चीफ रिपोर्टर भूपेंद्र देवांगन
बिलासपुर (सलवा जुडूम न्यूज) आपको बता दे कि बिलासपुर जिले के तहसील कोटा में महिला एवं बाल विकास विभाग में अंगद की तरह वर्षों से पैर जमा कर बैठे बाबू- पार्थो मोइत्रा का तबादला हुआ तो, विभागीय कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और उनके परिजनों में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी। दबी आवाज में अन्य कर्मचारियों ने भी बताया कि उनके लिए भी पार्थो मोइत्रा का तबादला किसी राहत से कम नहीं, कारण बहुत साफ है, इस बाबु ने विभाग को दिमक की तरह न केवल अंदर से भ्रष्टाचार करके खोखला कर दिया, बल्कि इसने वित्तीय क्षति द्वारा विभाग को हानि पहुंचाई, और महिला बाल विकास में कार्यरत महिलाओं को मानसिक प्रताड़ना देने में कोई कमी नहीं छोड़ी है, जो विभाग महिलाओं एवं बच्चों की सेवा के लिए बना हो, उसी विभाग के महिलाओं को एक अदना सा बाबू प्रताड़ित करने का कार्य करता हो, उस विभाग में ऐसे बाबुओं का होना अत्यंत निराशाजनक है। बात इतनी ही नहीं है, ऐसे भ्रटाचारी को कहीं न कहीं उन अधिकारियों का भी सहयोग प्राप्त रहा है, जो इस परियोजना या जिले में पदस्थ हैं, क्योंकि बाबू के भ्रष्टाचार में अधिकारी का भी हिस्सा रहता है, इसलिए तस्वीर साफ है, कि इस बाबू को इसके ही अधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त होगा। इस बाबू द्वारा प्रताड़ित जिले की कई महिलाओं ने, न केवल मानसिक कष्ट का सामना किया, बल्कि आर्थिक संकट में भी झोंकी गई। आलम ये था कि कुछ महिलाएँ तो मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुकी हैं, जो जाँच का विषय है, लेकिन महिला कर्मचारियों को सपोर्ट करने के बजाए उच्चाधिकारियों ने ऐसे भ्रष्ट बाबू को बचाया और विभागीय मलाई मिल- बांट कर खाते रहे। सालों से इस क्षेत्र में जमे रहने के कारण मोइत्रा स्वयं को कोटा क्षेत्र में विभाग का कर्ता-धरता समझने लगा, समझना भी चाहिए, क्योंकि इसका यदि ट्रांसफर हो भी जाये तो दलालों के द्वारा और अपनी चाटुकारिता के दम वो पर फिर कोटा परियोजना में ही वापस आ जाता था। लोगों ने बताया कि मोइत्रा बाबू कहते हैं, -“कोटा सोने की चिड़िया है” इन शब्दों से ही इस बाबू की सोच और नियत ज़ाहिर होती है। सोचने की बात यह है कि आखिर इस बाबू का इसी क्षेत्र में बार-बार वापस आना, क्या कभी विभाग के आला अफसरों के नजर में नहीं आया, या इन जैसे को शरण देने में विभाग के अधिकारियों का भी हाथ रहा है.? अन्यथा ऐसे कर्मचारियों का इतने दिन तक एक ही जगह टीक पाना एवं ट्रांसफर होने पर फिर उसी जगह वापस आना ये दर्शाता है कि बाबू इस क्षेत्र को अपना साम्राज्य समझने लगा है, और जिस परिवार की दुहाई देकर यह बार- बार इस क्षेत्र में वापस आता है वह परिवार बिलासपुर निवास करता है, कोटा में नहीं। आचार्य की बात है कि वे महिला पर्यवेक्षक जिनके छोटे बच्चे हैं और जिनके कंधों पर बुजुर्ग माता पिता की सेवा और घर परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी है, उन्हें ट्रांसफर का दंश झेलना पड़ता है, उनकी कोई नहीं सुनता, महिला बाल विकास विभाग में ही महिलाओं का शोषण हो रहा है, लेकिन ऐसे पुरुष बाबुबों पर विभाग मेहरबान है, तभी तो अपने गृह नगर में रहकर भ्रष्टाचार फैलाने वाला ये बाबू सुकून से नौकरी किया और फलता-फूलता रहा है। मोइत्रा बाबु हर सम्भव प्रयास करेगा, कि उसका तबादला रुक जाए, लेकिन अब देखना यह है, कि विभाग पुनः एक बार इस जैसे दानव का तबदला रोकर वही गलती दोहरायेगा या स्थानांतरित स्थान पर भेज कर उदाहरण पेश करेगा कि देर सबेर अति का अंत होता ही है।