* राजनीति सेवा का माध्यम है संग्रह का नहीं….!* *राजनीति में सफलता ईश्वरीय कृपा से किस्मत वाले को ही मिलती है* **स्वामी श्री सुरेन्द्र नाथ**

* राजनीति सेवा का माध्यम है संग्रह का नहीं….!*  *राजनीति में सफलता ईश्वरीय कृपा से किस्मत वाले को ही मिलती है*        **स्वामी श्री सुरेन्द्र नाथ**
* राजनीति सेवा का माध्यम है संग्रह का नहीं….!*  *राजनीति में सफलता ईश्वरीय कृपा से किस्मत वाले को ही मिलती है*        **स्वामी श्री सुरेन्द्र नाथ**

चीफ रिपोर्टर भूपेंद्र देवांगन

जांजगीर (सलवा जुडूम न्यूज) जब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था, तब राजनीति सेवा का माध्यम होती थी, राजनीति में आना गौरव की बात थी, लोग देश की सेवा करने के लिए अपनी नौकरी और पेशा छोड़कर राजनीति में आया करते थे, सुभाषचंद्र बोस जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए आईएएस पद से इस्तीफा दे दिया, महात्मा गांधी ने बैरिस्टर  का पेशा छोड़ दिया और राजनीति में आ गए, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने स्वतंत्रता और सामाजिक सुधारों के लिए राजनीति की, लेकिन आज राजनीति करने वाले कहते ज़रूर हैं, कि हम लोगों की और देश की सेवा करने के लिए राजनीति में आये हैं, किन्तु सत्ता में आते ही जीवन शैली में बदलाव हो जाता है, अकूत धन-सम्पत्ति बना कर, राजशाही जीवन जीते हैं। नेताओं की कथनी और करनी परस्पर विरोधी दिखाई देती हैं। जनता इस उम्मीद पर वोट देकर जीताती है कि उनका नेता उनके हित में काम करेगा, उनके समस्याओं का निवारण करेगा, लेकिन जीतने के बाद नेता खुद के विकास में लग जाते हैं। जनता विवश होकर देखती रहती है। नेता जी केवल अपने चाटुकारों के साथ भ्रमण करते हैं, वही चार लोग उनके खास होते हैं, उनके अलावा उन्हें किसी से सरोकार नहीं होता, और ये ही लोग जनता को धौंस दिखाते हैं, अधिकारियों कर्मचारियों से धमका कर पैसों की वसूली करते हैं। आज की राजनीति का यही चलन है, अब अपना सबकुछ त्याग कर जनता की भलाई के लिए राजनीति करने वाले नगण्य हो गए हैं। राजनीति करने का अवसर सबको नहीं मिलता, अगर ईश्वर ने अवसर दिया है, तो जिस जनता ने आपको विजयी बनाया है, उनकी उम्मीदों को पूरा करें, और लोगों के बीच एक निष्ठावान सेवक की पहचान बनायें। आपकी बेईमानी आपको धनवान तो बना सकती है, लेकिन लोगों की दृष्टि में सम्मान नहीं दिला सकती। ये जनता सब जानती है। जनप्रतिनिधि हैं तो इमानदारी से सेवा करें। लालच, अहंकार व बदले की भावना को त्याग कर जो सरल हृदय से जनता के बीच जाकर उनकी पीड़ा को सुनता है, समझता है, और जनहित में कार्य करता है, उसकी ही राजनीतिक यात्रा लम्बी होती है।