फर्जीवाड़ा/कूटरचित से नौकरी; निलंबन की राह पर और भी है प्रधानपाठक व शिक्षक,भर्ती में चयनकर्ता घेरे में, क्या उन पर भी होगी जांच/कार्रवाई ?,,,

फर्जीवाड़ा/कूटरचित से नौकरी;  निलंबन की राह पर और भी है प्रधानपाठक व शिक्षक,भर्ती में चयनकर्ता घेरे में, क्या उन पर भी होगी जांच/कार्रवाई ?,,,
फर्जीवाड़ा/कूटरचित से नौकरी;  निलंबन की राह पर और भी है प्रधानपाठक व शिक्षक,भर्ती में चयनकर्ता घेरे में, क्या उन पर भी होगी जांच/कार्रवाई ?,,,

छ ग चीफ रिपोर्टर भूपेंद्र देवांगन

कोरबा (सलवा जुड़ूम मीडिया) आपको बता दें कि अलग-अलग प्राप्तांकों वाली अंक सूची के आधार पर फर्जीवाड़ा के दोषी पाए गए वर्ष 2007 में शिक्षाकर्मी वर्ग-3 की नौकरी प्राप्त करने वाले और वर्तमान में प्रधानपाठक बन चुके चार प्रधान पाठकों का निलंबन के बाद जनपद से लेकर शिक्षा महकमे में सरगर्मी बढ़ गई है। विश्वासी सूत्रों के मानें तो आने वाले दिनों में और भी प्रधान पाठक व शिक्षक निलंबन की राह पर हैं। इनके संबंध में भी दस्तावेजों को लेकर शिकायतें हुई हैं और जांच लगभग पूरी हो चुकी है, आदेश जारी होना बाकी है। लगभग डेढ़ दर्जन ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही जल्द ही होने की बात कही जा रही है। फर्जी/कूटरचित अंक सूची के आधार पर नौकरी प्राप्त करने के मामले को जिला शिक्षा अधिकारी ने गंभीरता से लिया है और इसी का परिणाम है कि जांच के उपरांत कार्यवाही तय हुई है। निलंबित किए गए प्रधान पाठकों ने जो अंक सूची जनपद में नियुक्ति के समय जमा की थी और शिक्षा विभाग की सेवा पुस्तिका में दर्ज कराई गई अंक सूची के नंबरों में भिन्नता है।वैसे इस पूरे मामले को लेकर अब महकमे में यह चर्चा भी गर्म है कि जनपद स्तर पर की गई भर्ती में क्या चयनकर्ताओं की भूमिका को भी जांच के दायरे में रखा जाएगा? दरअसल उस समय जमा कराए गए दस्तावेजों की छानबीन कराई गई थी, उनकी प्रमाणिकता को भी जांचा गया था और ऐसे में जब अंकसूची को लेकर फर्जीवाड़ा की बात उजागर हो चुकी है तब चयन में शामिल लोगों की भूमिका को इस मामले में नकारा जाना उचित नहीं कहा जा सकता। जनपद से लेकर शिक्षा विभाग के गलियारे में चर्चा गर्म है कि उस समय के जनपद अधिकारी और कर्मचारी की भूमिका की जांच हो सकती है। इसमें एक बाबू की भूमिका को संदेह के दायरे में रखा गया है, जिसके विरुद्ध उस समय काफी शिकायतें भी हुई थी।0 पुलिस में जायेगा मामला,किसने की कूटरचनाइस बात के भी आसार बढ़ गए हैं कि मामला पुलिस को भी जांच के लिए सौंपा जा सकता है और FIR दर्ज कराई जा सकती है। वैसे इस बात की जांच होना जरूरी है कि कूटरचित अंकसूची कहां से और किससे बनवाई गई थी? क्या उस समय फर्जी प्रमाण पत्रों को बनाने का कोई गिरोह काम कर रहा था, जिसकी मदद से संबंधित लोगों ने नौकरी हासिल की?