क्या माँ प्रकृति स्वयं नैतिकता का पाठ पढ़ाएगी…!  *स्वामी सुरेन्द्र नाथ*    

क्या माँ प्रकृति स्वयं नैतिकता का पाठ पढ़ाएगी…!  *स्वामी सुरेन्द्र नाथ*    
क्या माँ प्रकृति स्वयं नैतिकता का पाठ पढ़ाएगी…!  *स्वामी सुरेन्द्र नाथ*    

छ ग चीफ ब्यूरो प्रमुख भूपेंद्र देवांगन

जांजगीर चांपा (सलवा जुड़ूम मीडिया) किसी की भी मृत्यु पीड़ादायक होती है, लेकिन उत्तरप्रदेश के कानपुर में एक डॉक्टर की मृत्यु बड़ी सुर्खियों में है, वे उत्तरप्रदेश सरकार में डिप्टी डायरेक्टर पद पर पदस्थ थे, उनकी पत्नी जज एवं उनके भाई आई.ए.एस. अधिकारी हैं। पिकनिक मनाने गए डॉक्टर साहब की डूबने से मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी मृत्यु का मामला, एक अलग ही मोड़ ले चुका है दरअसल मामला यह है कि जब वे डूब रहे थे, तब उनके साथी मित्रों ने वहां उपस्थित नाविक से पानी में उनकी तलाश करने के लिए बोला, उस नाविक ने पैसे देने की बात कही, कि आप मुझे ₹10000 दीजिए तब मैं उनकी तलाश करूंगा और शायद रूपए-पैसे की लेनदेन की बातों में समय निकल गया, चूँकि माँ गंगा उफान पर हैं जैसे ही डॉक्टर साहब गिरे वे, माँ गंगा के तेज बहाव में अदृश्य हो गए। पैसे लेने के बाद उस नाविक ने गहरे पानी में कूद कर पता लगाने का प्रयास किया, किंतु डॉक्टर साहब की बॉडी नहीं मिली और अभी तक डॉक्टर साहब की बॉडी पुलिस या प्रशासन को प्राप्त नहीं हुई है।        

 ये तो ईश्वरीय लीला है, वो कब किसे, किस रूप में अपने पास बुला लें ये प्रभु ही जानें, जब ये एक अप्रत्याशित घटना ही है, फिर यह विषय इतना चर्चा में क्यों है..? कारण है,वो नाविक जिसे पूरी दुनिया की एक अपराधी के रूप में देख रही है। उसका अपराध ये है कि उसने डॉक्टर साहब की बॉडी को तलाशने के पैसे मांगे, उसका पैसा मांगना अनैतिक हो गया, कैसे..? वो एक साधरण नाविक था, प्रशासन की तरफ से तैनात पेशेवर गोताखोर नहीं था, यदि अपनी जान जोखिम में डालने के उसने पैसे मांगे तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई अनैतिकता छुपी है।    कहीं न कहीं मुझे ऐसा लगता है की मां प्रकृति के माध्यम से, साक्षात ईश्वर स्वयं नैतिकता का पाठ पढ़ने के लिए कोई खेल रच रहे हों, एक नाविक ने पैसों की तो उसपर अनैतिक होने का, तोहमत लगाया जा रहा है, लेकिन धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर आजकल कितने नैतिक है, इसका व्याख्या करने की आवश्यकता मुझे नहीं है, आप सभी भुक्तभोगी होंगे। बिना पैसों की डॉक्टर बात तक नहीं करते मरीज़ चाहे मृत्युसैया पर पड़ा हो, जब तक उनकी निर्धारित फीस जमा नहीं की जाए और घंटो चलने वाली कागज़ी औपचारिकताएं पूरी न हो जाएं, तब तक डॉक्टर इलाज के लिए हाथ भी नहीं लगाते। इलाज के दौरान यदि मरीज के परिजनों के पास पैसों की कमी आ जाए तो बीच भंवर में इलाज रोक कर मरीज को छुट्टी दे देते हैं, कई बार मृत शरीर को फीस जमा करते तक, हॉस्पिटल बंधक बना कर रखते हैं और यह किसी एक डॉक्टर, किसी एक अस्पताल की कहानी नहीं है अब तो हर अस्पताल, हर संस्था एक ही ढर्रे पे चल रही है क्या कभी किसी ने इनसे प्रश्न किया कि आप जब डॉक्टरी पेशे में आए थे तो आपने सौगंध ली थी, कि आप बिना किसी भेदभाव के निष्ठा पूर्वक लोगों की सेवा करेंगे उनके जीवन की रक्षा करेंगे लेकिन डॉक्टर बनते ही, सबसे पहले वे अपने अस्पताल की फीस और अपनी आय की रक्षा करने जुट जाते हैं। क्या कभी डॉक्टर ये विचार करते हैं, कि वे कितने नैतिक होकर कार्य कर रहे हैं, कुछ विरले डॉक्टरों को छोड़ दिया जाए तो, कमोबेश सभी डॉक्टरों का यही हाल है। जबकि लोग डॉक्टरों को आज भी पृथ्वी का भगवान मानते हैं।            

मृतक डॉक्टर और उनके शोकसंतप्त परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदना है, ईश्वर उन्हें इस दुख को सहने की शक्ति दें। मृत्यु किसी की भी हो दुखदाई होती है, किन्तु इस घटना से, ये तो तय हो गया है, कि यहां कोई अमर होकर नहीं आया है, किसी न किसी बहाने से जाना सबको है, फिर नैतिकता का पाठ केवल उस गरीब नाविक को ही क्यों पढ़ाया जा रहा, हमारी सारी अपेक्षाएं एक सामान्य जन से ही क्यों होती हैं.?    

ये बड़े-बड़े डॉक्टर, उच्चतम पदों पर बैठे अधिकारी, बड़े-बड़े पदों पर बैठे नेता यहां तक की अभिनेता भी, न जाने कितनी गैर जिम्मेदाराना हरकतें करके निकल जाते हैं, और उनसे कोई भी नैतिकता का प्रश्न नहीं करता, आज यह ईश्वर की ही सीख कि, भगवान के रूप में देखे जाने वाले डॉक्टर केवल पैसों के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करने से नहीं कतराते,उसे नाविक ने यदि जान बचाने की पूर्व अपनी जान की जोखिम में डालने के पैसे चार्ज किया, तो पूरी दुनिया की नजर में आ गया।    

भारत एक सहिष्णु और धर्मपरायण देश है, जहां स्वधर्म के लिए लोगों ने राज पाट छोड़ दिया उस देश में, आज लोग पैसों के लिए अपना धर्म छोड़ रहे हैं। यहां धर्म से आशय किसी रिलिजन से नहीं है। धर्म का आशय है उस “स्वधर्म” से है, जिस व्यवसाय में आप हैं, उससे सम्बंधित कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा आप से की जाती है। अगर सभी नेता, अभिनेता, अधिकारी, डॉक्टर, कलेक्टर, जज, वकील जैसे बड़े-बड़े शक्तिशाली लोग अपने नैतिक धर्म का पालन करने लगे तो इस भारत की तस्वीर ही बदल जाएगी, लेकिन विडंबना यह है, कि सभी अनैतिकता के पथ, पर चल रहे हैं और पैसों के लिए सबसे पहले अगर छोड़ना पड़े तो स्वधर्म, ही छोड़ कर आगे बढ़ते हैं याद रखिए पैसा बनाना कोई बड़ी बात नहीं है, कठिन है लोगों के हृदय में अपना स्थान बनाना।

लोगों के हृदय में स्थान बनाने के लिए आपको अपने स्वार्थ का त्याग करना पड़ेगा, आपके छोटे से त्याग से, आप लोगों के मन में भगवान जैसा ऊंचा दर्जा प्राप्त कर लेते हैं। डॉक्टर को तो लोग भगवान का अवतार ही मानते हैं, लेकिन दुखदाई तो यह है, कि डॉक्टर भी जब व्यापारी की तरह व्यवहार करते हैं तो वह न जाने कितनी जिंदगियों से खिलवाड़ करते हैं। आज प्रकृति ने उस नाविक के माध्यम से, स्वयं इसका सबक दिया है यह किसी डॉक्टर के लिए ही नहीं हर सक्षम पेशेवर के लिए एक सबक है, धन जीवन का अहम हिस्सा है, लेकिन जीवन से ऊपर नहीं है, मुझे उम्मीद है कि लोग इससे सबक लेंगे, और आत्मसात करेंगे।