चीफ रिपोर्टर भूपेंद्र देवांगन
जांजगीर (सलवा जुडूम न्यूज) हमारे देश में एक राजनीतिक निर्णय ने इस देश के मौलिक ताने-बाने की पहचान नष्ट कर दी, वो एक शब्द था- “पंथनिरपेक्षता” जिसका संविधान में प्रवेश कराकर देश की मौलिकता को हासिये पर रख दिया गया। कारण बहुत साधारण था, वोट बैंक पर पकड़ बनाना। विश्व के हर देश में विभिन्न प्रकार के लोग निवास करते हैं, कई देशों में उनके मूल निवासियों से ज्यादा प्रवासी निवासरत हैं, लेकिन किसी देश ने बाहरी लोगों को संतुष्ट करने के लिए अपनी मौलिकता नहीं बदली, लेकिन हमारे देश में सैकड़ों वर्षों की गुलामी थी, कई विदेशी आक्रांताओं के प्रहार ने हमारी संस्कृति ही नहीं, हमारे धर्म को भी क्षति पहुँचाया। स्वतंत्रता मिलते-मिलते हमारा देश विभिन्न मजहबों, सम्प्रदायों में बंट गया कुछ आक्रांता यहीं के निवासी हो गए, और स्वंत्रता के पश्चात हमारे नेतृत्व ने मौलिक संविधान में तुष्टिकरण वाला परिवर्तन करना प्रारंभ किया, “पंथनिरपेक्ष” शब्द जोड़ा गया, और पंथ-निरपेक्ष के नाम पर सबसे ज्यादा किसी धर्म का शोषण हुआ, या क्षति हुई तो सनातन धर्म की…!! सनातन धर्म जिसे वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में जो हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा, यह दुनिया का सबसे प्राचीनतम धर्म है। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। यह धर्म, ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है, वेद और पुराणों की मानें तो नब्बे हजार वर्षों से भी प्राचीन जड़ें हैं सनातन धर्म की, लेकिन आज भी नवीनतम और प्रासंगिक है। जीवन के सभी आयामों को स्पर्श करने वाला महासागर की तरह विस्तृत है, और उसी क्षण किसी बिंदु पर दुविधा हो तो गागर में सागर जैसे कोई भर दे वैसे तत्क्षण उपाय बताने वाला अद्भुत मार्ग है सनातन धर्म। सनातन धर्म में ही यह विशेषता है कि आप शास्त्रों में लिखें हर वचन का, अपनी बुद्धि और चेतना के अनुसार व्याख्या कर सकते हैं और हम तो भगवत गीता जो स्वयं श्री कृष्ण के मुंह से निकली हुई वाणी है, उसे पर भी टीका लिख देते हैं। यही कारण है की सनातन पुरातन होकर भी, नित्य नवीन होता चला जा रहा है, क्योंकि हमें हमारे धर्म ने समय अनुसार नवीन परिवर्तन और अद्यतन करने का सदैव खुला विकल्प दिया है। साथ ही परिवर्तन को आत्मसात करने पर भी हमारे सनातन धर्म की मौलिकता नहीं खोती, यही कारण है की नवीनता ग्रहण की जाती है, किंतु उसकी जड़ें इतनी गहरी, और मजबूत हैं कि धर्म के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं होता। इसीलिए सनातन सत्य है और सत्य कभी समाप्त नहीं हो सकता परिवर्तित होता रहता है। विश्व के हजारों धर्म और सभ्यताओं का उत्थान हुआ और पतन हो गया, लेकिन आज भी अपनी मौलिकता के साथ जो दृढ़ता से खड़ा है, वो सनातन धर्म है, किन्तु विडंबना यह है, कि इसे मानने वाले ही जाने अंजाने इसको क्षति पहुँचा रहे हैं। कहते हैं न,अज्ञानी से कोई खतरा नहीं, लेकिन अर्धज्ञानी जानलेवा होता है। हमारी यही स्थिति है, अपने धर्म और संस्कृति का वास्तविक ज्ञान नहीं होना पाप नहीं, लेकिन किसी अन्य के द्वारा हमारी संस्कृति को नीचा दिखाना, हमारे धर्म को अपमानित किया जाना, हम सहन कर लेते हैं, ये पाप है। इससे भी बड़ा पाप है, जब हम अपने वेद-पुराणों, ग्रन्थों को दूसरों के कहने से हेय दृष्टि से देखते हैं, ये महापाप की श्रेणी में आता है। आज कल फैशन इतना हावी है, कि आधुनिक कहलाने के लिए अपने धर्म से हम शर्मिंदा होते हैं। जो धर्म वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर कार्य करता है, जिस सनातन परंपरा ने, योग, ध्यान और गणितीय सिद्धांत दिए, जो आज भी अकाट्य हैं। वैसे धर्म को और जानने का प्रयास करने के बजाय हम इसका अपमान कर के आधुनिक कहलाना पसंद करते हैं यही विडंबना है सनातन धर्म को राजनीतिक पार्टियों की संकीर्ण प्रस्तुति ने भी बहुत क्षति पहुँचाई है। किसी दल ने सनातनियों (हिंदुओ) को हासिये पर रखकर अन्य को ऊंचा उठाया, केवल वोटों की राजनीति की, और किसी दल ने राम के नाम से राजनीति की, और सबसे गलत देश की वो सुषुप्त जनता है, जिन्होंने अपने धर्म की कोई चिंता ही नहीं, जबकि ये राष्ट्र धर्म के नाम पर विभाजित हुआ था। लोग कहते हैं, राजनीति में धर्म नहीं होना चाहिए, लेकिन मैं कहता हूँ, धर्म विहीन राजनीति से किसी राष्ट्र का कल्याण कभी नहीं हो सकता। राजनीति में धर्म से आशय, धार्मिक विभाजन से नहीं, बल्कि उचित कर्तव्यों से है। सुप्रीम कोर्ट के लोगो में लिखा है- “यतो धर्मः ततो जयः” अर्थात जहां धर्म है, वहां जय (जीत) है। जो दल अपने लोभ के लिए कार्य करेगा, उसका पतन निश्चित है, जो धर्म के मार्ग पर चलेगा वही विजयी होगा। सनातन की जय करने के लिए किसी राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता नहीं है, जनता में स्व-धर्म जागृति की आवश्यकता है। जो दल, धर्म को धारण करेगा, धर्म की सुरक्षा करेगा, धर्म उसकी रक्षा करेगा, उसकी विजय सुनिश्चित है।