छ ग चीफ ब्यूरो प्रमुख भूपेंद्र देवांगन
*ज्ञात आंकड़े के मुताबिक 209 किलोमीटर लंबी हसदेव नदी अपनी उपेक्षा की सांसें गिन रही हैं, क्या जिला प्रशासन इस ओर सुध लेगा।
न्यूज़ जांजगीर-चांपा (सलवा जुडूम मीडिया) कैमूर पहाड़ियों से निकला हुआ हसदेव नदी में एक समय पानी लबालब भरा हुआ रहता था लेकिन आजकल बढ़ते हुए उद्योग-धंधे, लगातार नदी किनारे बढ़ता अतिक्रमण, तेज़ गति से औघौगिक इकाईयां और उन ईकाइयों से निकलने वाली वेस्ट मटेरियल से हसदेव नदी के किनारे बसा हुआ खासकर चांपा नगर की नदी किनारा पूरी तरह से प्रदूषित हो गया हैं । कहने में संकोच नहीं है कि आजकल हम-सब लोग कचरे को ढ़ो रहे हैं । शरद हो या बसंत या ग्रीष्म ऋतु हर मौसम में लबालब पानी भरा रहता था । इसी महिने की ही बात हैं जब मैं अपने पारिवारिक कार्यक्रम के अंतर्गत जब दसवें दिन नदी में नहाने गया हुआ था तो देखा नदी में जैसा पानी होना चाहिए था और तो और नहीं के बराबर था । लगातार घटते जल स्तर का असर नदी पर भी साफ दिखाई पड रहा था । कोसा ,कांसा एवं कंचन नगरी चांपा के आस-पास अनेकों उद्योग धंधे के साथ-साथ ईट-भट्ठा, क्रेशर उद्योग एवम् कई अवशिष्ट पदार्थों का धड़ल्ले से कारोबार चल रहा हैं । बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने के लिए रेत का भी हसदेव नदी से अवैध उत्खनन हो रहा हैं । इसकी वजह से हसदेंव नदी के किनारे की मिट्टी का क्षरण तेजी से हो रहा हैं । कटाव को रोकने के लिए आज तक स्थानीय प्रशासन ने भी ठोस कार्रवाई नहीं की हैं । विशेषज्ञों का कहना हैं कि कटाव को नजर-अंदाज करना आने वाले जनरेशन के लिए काफ़ी नुक़सान दायक साबित हो सकता हैं। एक बात बताते हुए आप भी आश्चर्य में पड़ जायेंगे।
*हसदेव नदी का पानी पहले स्वच्छ था । औद्योगिक इकाइयों द्वारा केमिकल युक्त अपशिष्ट सीधे नदी में बहाएं जाने तथा नालियों का पानी सीधे नदी में मिलने से पानी प्रदुषित ।*
साहित्यिक संस्था अक्षर साहित्य परिषद के उपाध्यक्ष शशिभूषण सोनी ने बताया कि तीन-दशक पहले हसदेव नदी का पानी एक दम स्वच्छ था, आर-पार करना काफ़ी मुश्किल होता था । आज एक बच्चा भी नदी आराम से पार कर सकता हैं । हसदेव नदी के तट पर लगभग आधा दर्जन औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं । इनके द्वारा केमीकल युक्त अपशिष्ट सीधे नदी में बहाने की खबरें हैं वही चांपा नगर सहित आस-पास के गांवों की नालियों का पानी सीधे नदी में बहा दिया जाता हैं। इसके चलते वार्ड क्रमांक 1 पानी टंकी से लेकर हसदेव ब्रीज तक क्षेत्र दल-दल में तब्दील हो चुका हैं । मज़े की बात यह हैं कि नदी में निस्तारण करने वाले लोगों को स्वच्छ पानी के बजाए नाली का पानी उपयोग करने मजबूर हैं।
*उदासीनता ! आज़ हसदेव नदी अपनी अस्तित्व बचाने के लिए सिसक रही हैं ।*
दैनिक समाचार-पत्रों से सम्बद्ध तथा नगर के साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि हसदेव नदी में जो पानी बहकर आ रहा हैं , वह पूरी तरह से प्रदूषित हो गया हैं । दूषित पानी से चांपा सहित आसपास के लोगों को चर्म रोग की संभावना बढ़ रही हैं । हसदेव नदी को स्वच्छ और संरक्षित करने की मांग को लेकर हसदेव सेवा संकल्प अभियान के संयोजक अखिलेश-कोमल पाण्डेय ने कुछ वर्षों पहले जन-जागरण अभियान चलाया था । मुख्यमंत्री से लेकर कलेक्टर तक को ज्ञापन सौंपा जिसमें हसदेव सरिता के संरक्षण की मांगे थी । इस दौरान कारवां लेकर हसदेव नदी के तट पर रहने वाले लोगों को साथ लेकर पदयात्रा तक किया । हसदेव नदी को संरक्षित करने दो करोड़ रूपए की स्वीकृति भी मिली, किंतु कार्य हुआ या नहीं हुआ आज-तक समझ से परे हैं । स्थिति ज्यो कि त्यों बरकरार हैं । सरकारी सहयोग और जन-प्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते कुछ ही दिनों में वह भी ठंडा पड़ गया । कहने में संकोच हो रहा हैं कि हसदेव नदी अपने अस्तित्व के लिए सिसक रही हैं ।संकट मोचन हनुमान मंदिर डोगाघाट , लोगों के कष्ट मिटाने वाली बाबा कलेश्वरनाथ मंदिर पीथमपुर सहित अनेकों अन्यान्य देवालय इसी तट पर हैं लोगों को तारने वाली नदी आज स्वयं के तारणहार का इंतजार कर रही हैं । दशगात्र में महादेव तट चांपा में पहुंचकर गंदगी, अतिक्रमण और जगह जगह कूड़े के ढेर को देखकर मेरा मन क्षुब्द हो गया । नमामि गंगे की तर्ज पर हसदेव नदी में भी स्वच्छता अभियान की शुरुआत किए जाने की आवश्यकता हैं । हसदेव नदी से हमारे-आपके जीवन और मृत्यु तक का संबंध हैं ।
*209 किलोमीटर लंबी हसदेव नदी अपनी उपेक्षा की सांसें आज़ गिन रही हैं , ज़िला प्रशासन ही तारणहार बन सकती हैं !*
जल मानव शरीर की सभी जैविक क्रियाओं का आधार हैं। मनुष्य ही नहीं बल्कि धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए जरुरी पोषक तत्वों का वाहक जल ही हैं । जल को स्वच्छ रखने और प्रदुषित होने से बचाने में जिला प्रशासन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं । कल-कल बहती हुई हसदेव नदी ही नहीं बल्कि संसार के सभी नदियों के घाटों के किनारों पर निस्तारी सहित अन्य सामाजिक कार्य होते रहता हैं । कहने में हर्ज नहीं हैं कि 209 किलोमीटर लंबी हसदेव नदी अपनी उपेक्षा की सांसें गिन रही हैं । यह बात सबको याद रखनी चाहिए कि हसदेव नदी के घाटों पर हमारी जीवन की अंतिम यात्रा पूरी होती हैं । हसदेव नदी ठंड के मौसम में आने से पहले ही पानी के लिए लोगों को तरसा रही हैं यह सचमुच कितनी विडंबना की बात हैं , किन्तु इसकी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं हैं । जांजगीर-चांपा, कोरबा सक्ती और रायगढ़ जिला प्रशासन को तत्त्काल ध्यान देकर या फ़िर इस दिशा में पहल किए जाने की आवश्यकता हैं ।